एक था बावला, एक थी बावली।
दिन भर लकड़ी काटने के बाद थका-मादा बावला शाम को घर पहुंचा और उसने बावली से कहा, "बावली! आज तो मैं थककर चूर-चूर हो गया हूं। अगर तुम मेरे लिए पानी गरम कर दो, तो मैं नहा लूं, गरम पानी से पैर सेक लूं और अपनी थकान उतार लूं।"
बावली बोली, "वाह, यह तो मैं खुशी-खुशी कर दूंगी। देखो, वह हंडा पड़ा है। उसे उठा लाओ।
बावले ने हंडा उठाया और पूछा, "अब क्या करूं?"
बावले बोली, "अब पास के कुंए से इसमें पानी भर लाओ।"
बावला पानी भरकर ले आया। फिर पूछा, "अब क्या करूं?"
बावली बोली, "अब हंडे को चूल्हे पर रख दो।"
बावले ने हंडा चूल्हे पर रख दिया और पूछा, "अब क्या करूं?"
बावली बोली, "अब लकड़ी सुलगा लो।"
बावले ने लकड़ी सुलगा ली और पूछा, "अब क्या कर1ं?"
बावली बोली, "बस, अब चूल्हा फूंकते रहो।
बावले ने फूंक-फूंककर चूल्हा जला लिया और पूछा, "अब क्या करूं?"
बावली बोली, "अब हंडा नीचे उतार लो।"
बावले ने हंडा नीचे उतार लिया और पूछा, "अब क्या करूं?"
बावली बोल, "अब हंडे को नाली के पास रख लो।"
बावली ने हंडा नाली के पास रख लिया और पूछा, "अब क्या करूं?"
बावली बोली,"अब जाओ और नहा लो।"
बावला नहा लिया। उसने पूछा, "अब क्या करूं?"
बावला बोली, "अब हंडा हंडे की जगह पर रख दो।"
बावले ने हंडा रख लिया और फिर अपने सारे बदन पर हाथ फेरता-फेरता वह बोला, "वाह, अब तो मेरा यह बदन फूल की तरह हल्का हो गया है। तुम रोज़ इस तरह पानी गरम कर दिया करो तो कितना अच्छा हो।"
बावली बोली, "मुझे इसमें क्या आपत्ति हो सकती है। सोचो, इसमें आलस्य किसका है?"
बावली बोली, "बहुत अच्छा! तो अब तुम सो जाओ।"
Black Words White Page (Shoemaker)
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Black Words White Page: Aboriginal Literature 1929-1988 (15th anniversity
edition; Canberra: ANU E Press, c2004), by Adam Shoemaker (PDF and HTML
with comm...
20 hours ago
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