इब्राहीम आधी रात में अपने महल में सो रहा था। सिपही कोठे पर पहरा दे रहे थे। बादशाह का यह उद्देश्य नहीं था कि सिपाहियों की सहायता से चोरों और दुष्ट मनुष्यों से बचा रहे, क्योंकि वह अच्छी तरह जानता था कि जो बादशाह न्यायप्रिय है, उसपर कोई विपत्ति नहीं आ सकती, वह तो ईश्वर से साक्षात्कार करना चाहता था।
एक दिन उसने सिंहासन पर सोते हुए किसके कुछ शब्द और धमाधम होने की आवाज सुनी।
वह अपने दिल में विचारने लगा कि यह किसीकी हिम्मत है, जो महल के ऊपर चढ़कर इस तरह धामाके से पैरे रक्खे! उसने झरोखों से डांटकर कहा, ‘कौन है?’’
ऊपर से लोगों ने सिर झुकाकर कहा, ‘‘रात में हम यहां कुछ ढूंढ़ने निकले हैं।’’
बादशाह ने पूछा, ‘‘क्या ढूंढ़ने निकले हैं?’’
लोगों ने उत्तर दिया, ‘‘हमारा ऊंट खो गया है उसे।’’
बादशाह ने कहा, ‘‘ऊपर कैसे आ सकता है?’’
उन लोगों ने उत्तर दिया, ‘‘यदि इस सिंहासन पर बैठकर, ईश्वर से मिलने की इच्छा की जा सकती है तो महल के ऊपर ऊंट भी मिल सकता हैं।’’
इस घटना के बाद बादशाह को किसीने महल में नहीं देखा। वह लोगों की नजर से गायब हो गया।
[इब्राहीम का आन्तरिक गुण गुप्त था और उसकी सूरत लोगों के सामने थी। लोग दाढ़ी और गुदड़ी के अलावा और क्या देखते हैं?]1
The Story of Noah's Ark (Smith)
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The Story of Noah's Ark (Boston and New York: Houghton Mifflin Co., 1905),
by E. Boyd Smith (page images at childrensbooksonline.org)
17 hours ago
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