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Friday, June 26, 2009

९/ मूर्खों से भागो

हजरत ईसा एक बार पहाड़ की तरफ इस तरह दौड़े जा रहे थे कि जैसे कोई शेर उनपर हमला करने के लिए पीछे से आ रहा हो। एक आदमी उनके पीछे दौड़ा और पूछा, ‘‘खैर तो है? हजरत, आपके पीछे तो कोई भी नहीं, फिर परिन्दे की तरह क्यों उड़े चले जा रहे हो?’’ परन्तु ईसा ऐसी जल्दी में थे कि कोई जवाब नहीं दिया। कुछ दुर तक वह आदमी उनके पीछे-पीछे दौड़ा और आखिर बड़े जोर की आवाज देकर उनको पुकार, ‘‘खुदा के वास्ते जरा तो ठहरिये। मुझे आपकी इस भाग-दौड़ से बड़ी परेशानी हो रही है। आप इधर से क्यों भागे जा रहे हैं? आपके पीछे न शेर है, दुश्मन!’’
हजरत ईसा बोलो, ‘‘तेरा कहना सच है। परन्तु मैं एक मूर्ख मनुष्य से भाग रहा हूं।’’
उसने कहा, ‘‘क्या तुम मसीहा नहीं हो, जिनके चमत्कार से अन्धे देखने लगते हैं और बहरों को सुनायी देने लगता है?’’
वह बोले, ‘‘हां।’’
उसने पूछा, ‘‘क्या तुम वह बादशाह नहीं कि जिनमें ऐसी शक्ति है कि यदि मुर्दे पर मन्त्र फंक दे तो वह मुर्दा भी जिंदा पकड़ें गए शेर की तरह उठा खड़ा होता है।’’
ईसा ने कहा, ‘‘हां, मैं वही हूं।’’
फिर उसने पूछा, ‘‘क्या आप वह नहीं कि मिट्टी को पक्षी बनाकर जरा मन्त्र पढ़े तो जान पड़ जाये और उसी वक्त हव में उड़ने लगे?’’
ईसा ने जवाब दिया, ‘‘बेशक, वही हूं।’’
फिर उसने निवदन किया। ‘‘ऐ पवित्र आत्मा! आप जो चाहें कर सकते हैं, फिर आपको किसका डर है?’’
हजरत ईसा ने कहा, ‘‘ईश्वर की कसम, जो और जीव का पैदा करनेवाला है,
और जिसकी महान् शक्ति के मुकाबले में आकाश भी तुच्छ हैं, जब उसके पवित्र नाम को मैंने बहारों और अन्धों पर पढ़ा तो वे अच्छे हो गये, पहाड़ों पर चढ़ा तो उनके टुकड़े-टुकड़े हो गये, मृत शरीरों पर पढ़ा तो जीवित हो गये, परन्तु मैंने बड़ी श्रद्धा से वही पवित्र नाम जब मूर्ख पर पढ़ा और लाखों बार पढ़ा तो अफसोस कि कोई लाभ नहीं हुआ!’’


उस आदमी ने आश्चर्य से पूछा कि हजरत, यह क्या बात है कि ईश्वर का नाम वहां फायदा करता है और यहां कोई असर नहीं करता? हालांकि यह भी एक बीमारी है और वह भी। फिर क्या कारण है कि उस सृष्टि-कर्ता का पवित्र नाम दोनों पर समान असर नहीं करता?
हजरत ईसा ने कहा, ‘‘मूर्खता का रोग ईश्वर की ओर से दिया हुआ दंड है और अन्धेपन की बीमारी दंड नहीं, बल्कि परीक्षा के तौर पर जो बीमारी है, उसपर दया आती है, और मूर्खता वह रोग है, जिससे दिल में जलन होती है।’’
[हजरत ईसा की तरह मूर्खों से दूर भागना चाहिए। मूर्खों के संग ने बड़े-बड़े झगड़े पैदा किये है। जिस तरह हवा आहिस्ता-आहिस्ता पानी को खुश्क कर देती हैं, उसी तरह मूर्ख मनुष्य भी धीरे-धीरे प्रभाव डालते है और इसका अनुभव नहीं होता।]1

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